बुरी औरत हूँ मैं
(1)
झुरमुटी शामों में उदास पपीहे की पीहू पीहू कौंच रही थी सीना और नरेन हर लहर से लड़ रहा था, समेट रहा था खुद को जब भी किसी दरीचे में कोई न कोई लहर आकर छेड़ जाती सुप्त तारों को और फिर शुरू हो जाती एक और जद्दोजहद कभी वक्त से तो कभी खुद से.
काश दिल एक जंगल होता जहाँ होते सिर्फ शेर चीते बाघ लोमड़ियाँ या फिर पेड़ पौधे और कंटीली झाड़ियाँ तो शायद इतना संघर्ष न करना पड़ता उसे.....नहीं नहीं, जंगल में भी जंगली जानवरों से लड़ना पड़ता है खुद के अस्तित्व को बचाए रखने को तो फिर क्या होता दिल का ? होती कोई मातमी धुन सी जो सिर्फ तभी बजती जब किसी का कोई अपना बिछड़ता शायद सुकूँ के कुछ पल जी लेता मगर अब ? अब क्या ? कहाँ जाऊँ ? क्या करूँ ? कौन समझेगा मेरी दास्तान ?
मैं जो सारे ज़माने से लड़ा सिर्फ इसलिए ताकि जी सकूँ सुकूँ भरी ज़िन्दगी मनचाही आज खाली हाथ मसल रहा हूँ........क्या इसी दिन के लिए थी सारी जद्दोजहद ? कहाँ गलत था मैं ? सोच के भंवर में डूब गया.
चट्खीला समंदर सामने था और रेत मानो चाँदी बिखरी पड़ी हो और सागर की लहरें ढूंढ रही हों उसमे अपना अस्तित्व कुछ ऐसा ही वजूद था तुम्हारा शमीना. समंदर के सीने पर किलोल करतीं तुम मानो आमंत्रित कर रही हों.......... ओ समंदर ! देख क्या है तुझमे इतना दम कर सके मुझसे मुकाबला.........देख कैसे तुझ पर पाँव रख दिया है मैंने और तू है अब मेरी मुट्ठी में, तैराकी का हर हुनर मानो एक ही पल में आजमाना चाहती थीं तुम. जाने कौन सी डाल से छूटी चिरैया थी जिसके उड़ने को आकाश भी कम पड़ रहा था मानो झुक रहा था आसमां भी उसके क़दमों पर. जलपरी सी तुम, तुम्हारी खनकती हंसी और सुमधुर आवाज़ मानो लिखना चाहती हो समंदर के सीने पर एक दस्तावेज......... है किसी में दम तो पढ़ के बताये. मेरी निगाह तो बस जो ठहरी तो ठहरी ही रही, मानो चलचित्र पर कोई दृश्य आकार ले रहा हो और देखने वाला उसी में डूब गया हो ऐसी मेरी हालत थी और इस निद्रा से बाहर तब आया जब तुम्हारे सुकोमल अंगों पर निगाह पड़ी, तुम जलपरी सी समंदर से बाहर निकलीं तो कामदेव के बाणों से बिद्ध हो मेरी निगाहें सिर्फ और सिर्फ तुम पर ही टिकी रहीं और शायद ये बात तुमने भी महसूस कर ली थी तभी कभी कभी मुझ पर उचटती सी निगाह डालतीं और खिलखिला उठतीं तब यूँ लगता मानो सारी कायनात में कहीं कोई संगीत बज रहा है जिसकी झंकार से चारों दिशायें गुंजरित हो उठी हों. जाने कौन सी डोर थी जिससे आकर्षित हो मैं तुम तक खिंचा चला गया और तुम्हारी अभी अभी खींची एक तस्वीर तुम्हें भेंट करने के उद्देश्य से मैंने अपना मोबाइल तुम्हें दिखाया जिसमे तुम समंदर के सीने पर किलोल करती किसी सोन मछरिया सी लग रही थीं और उसे देखते ही तुमने कहा, “इसे मुझे शेयर करेंगे ?”
“जी जरूर, आप ही के लिए है ये.”
“वैसे बिना आज्ञा किसी की तस्वीर लेना गुनाह है शायद आप जानते तो होंगे ?”
“जी, बिलकुल जानता हूँ लेकिन नीयत साफ़ है इसीलिए इसे आपको देने आया हूँ वर्ना चुपचाप लेकर भी जा सकता था और मनचाहा उपयोग भी कर सकता था और आपको पता भी नहीं चलता. “
“जानती हूँ तभी तो अब तक नाराज नहीं हुई वर्ना........ “ कह तुमने वाक्य अधूरा छोड़ दिया.
ये लीजिये अपनी अमानत कह मैंने उसके मोबाइल पर उसकी तस्वीर भेज दी और वो थैंक्स कह आगे बढ़ गयी और मैं वहीँ उसे जाते हुए देखता रहा. न नाम पूछा न अता पता लेकिन एक नशीला सा वृत्त मेरे चारों ओर बन गया और मैं उसके प्रभाव में खो गया.
ख्वाब और हकीकत में कुछ तो फर्क होता है मगर यहाँ तो ख्वाब को हकीकत का जामा पहनाने को दिल मचलने लगा. बच्चा चन्द्र खिलौना पाने को आतुर हो उठा. जाने कितने दिन कितनी रातें इस बिस्तर ने आँखों में ही गुजरते देखीं हैं, प्रत्यक्ष गवाह है. दिनों का गुलाबी होना शायद इसे ही कहते हैं जब एक ख्याल का रेशमी बादल हर वक्त आँखों में लहराए और मन गेंद सा कभी इस पाले तो कभी उस पाले में दौड़ा जाए.
न, तुम्हारा कोई अता पता नहीं फिर भी होशो हवास पर तुमने ऐसे कब्ज़ा किया मानो जन्मों से तुम्हारा ही जड़ खरीद गुलाम होऊं. अब इस विशाल महासागर में ढूंढूं भी तो कहाँ ये दुनिया का समंदर तो बहुत बड़ा है और मेरी चाहत बहुत छोटी, सिर्फ तुम तक ही थी मेरी दुनिया सिमटी हुई और इसी आस में लगा रहा था हर गली चौराहे का चक्कर शायद कहीं दिख जाओ यदि इसी शहर की हो तो या फिर बाहरी भी हुईं तो जरूर किसी न किसी पिकनिक स्पॉट या दर्शनीय स्थल पर दिख जाओगी और शाम होते ही फिर से समंदर से हाथ मिलाने चला आता था, समंदर का शोर मानो मेरे दिल की ही तो आवाज़ थी, उसकी हर लहर मेरी बेचैनियों का प्रत्यक्ष प्रमाण ही तो थी. खोज के तीर तरकश से निकल अपनी मंजिल की तलाश में भटक रहे थे कि एक दिन अचानक तुम दिखीं वो भी पुलिस गाडी में और मैंने लगा दी अपनी कार उसके पीछे और पहुँच गया पुलिस स्टेशन तुम्हारे साथ.
समझ नहीं आ रहा था आखिर माजरा क्या है लेकिन पुलिस स्टेशन पहुँचते ही सारा माजरा साफ़ हो गया जिसे मेरा मन कभी स्वीकार ही नहीं कर पाया. नहीं, ऐसा नहीं हो सकता, तुम वो नहीं हो सकतीं, तुम ऐसा कोई गलत कार्य कर ही नहीं सकतीं, जरूर कोई ग़लतफ़हमी हुई है, सोच मैंने तुम्हारी जमानत कराने की सोची और अपने वकील द्वारा तुम्हारी जमानत करवा भी ली और तुम्हें अपने साथ अपने घर ले आया.
“पहचाना मुझे आपने ?”
“नहीं, मगर लगता है कहीं देखा जरूर है आपको “
“जी, मैं वो ही हूँ जिसने आपकी फोटो खींची थी सागर किनारे “
“ओह यस, वो ही सोच रही थी आखिर तुम हो कौन देखे भाले लग रहे हो” कहते कहते उसने सिगरेट पीनी शुरू कर दी और धुएं के गुबार में उसका अक्स धुंधलाने लगा मगर मेरी निगाह तो उसके चेहरे से हट ही नहीं रही थी.
“क्या आप अपने बारे में कुछ बताना चाहेंगी या आपको कहाँ छोड़ दूं यानि आपका घर कहाँ है और आप कैसे इन लोगों के साथ पकड़ी गयीं ? मुझे उत्सुकता है सब जानने की यदि आप बताना चाहें तो क्योंकि हूँ तो मैं भी अनजान ही. “
“ देखिये मैं एक मध्यमवर्गीय लड़की हूँ. मेरे माता पिता भाई बहन सब हैं. मैं कॉलेज में पढ़ती हूँ. अब आप तो जानते ही हैं कॉलेज गोइंग गर्ल्स के कितने खर्चे होते हैं, अब वो एक सीमित आय से तो पूरे हो नहीं सकते इसलिए दूसरा दरवाज़ा खोलना ही पड़ता है, पहला दरवाज़ा एक भरम है और दूसरा हकीकत. “
“ यानि......मैं समझा नहीं आप कहना क्या चाहती हैं ?”
“यानि ये कि मैं यहाँ हॉस्टल में रहती हूँ और हॉस्टल में रहने वाली और लड़कियों को देखती हूँ कैसे बेहिसाब पैसा अपने शौक पूरे करने में खर्च करती हैं तो मेरा भी दिल करता है मैं भी अपनी मनपसंद ड्रेस जूते सैंडिल परफ्यूम आदि खरीदूं, शाम को डिस्को में जाऊं, मूवीज वगैरह देखूं लेकिन एक सीमित आय में ये सब मुमकिन नहीं है इसलिए दूसरे दरवाज़े पर दस्तक देनी ही पड़ती है.”
“दूसरा दरवाज़ा मतलब ?” मैंने हैरानी से उसे देखते हुए पुछा तो वो बोली
“ दूसरा दरवाज़ा मतलब अपनी बॉडी, अपना शरीर तो अपना है न उसका जैसे चाहे उपयोग करूँ और इससे बेहतर मुझे और कोई रास्ता लगा ही नहीं.”
“ मतलब ?” आश्चर्यमिश्रित स्वर में मैंने पूछा
“मतलब ये कि आय एम् ए कॉल गर्ल “ धुएं के छल्ले उडाती हुई वो बोली और मैं तो उछल ही पड़ा ये सच जानकर, अवाक हो उसे देखता रहा और मुंह से सिर्फ यही निकला
व्हाट ?
“ हाँ यही है सच मिस्टर”, ऊंगलियों में सिगरेट को घुमाते हुए उसने कहा, “जानते हो इस वक्त मुझे ऐसे ही किसी बकरे की जरूरत थी जो मुझे वहां से बाहर निकाल सके वर्ना घर तक बात पहुँचती तो बहुत मुश्किल में पड़ सकती थी”, बड़ी सहजता से वो बोले जा रही थी और मेरे दिलो दिमाग सुन्न हुए जा रहे थे, ये कैसा सत्य मैंने जाना.
“ अच्छा मिस्टर, अब मुझे चलना होगा लेकिन तुम्हारा उधार रहा मुझ पर......... इस रिहाई के बदले जब चाहे बुला लेना मैं चली आऊँगी”, कह वो चलने को उद्दत हुई तो मुझे होश आया और मैंने उसे कहा
“मैं कुछ जानना चाहता हूँ क्या थोड़ी देर रुक सकती हो, मेरी बातों का जवाब दे सकती हो ?”
कुछ सोचते हुए वो बोली, “देखो और कोई होता तो न कह देती लेकिन इस वक्त तुमने मेरी सहायता की है तो रुक सकती हूँ” कह उसने अपने मोबाइल से एक नंबर मिलाया और कहा उसे आने में थोड़ी देर हो जायेगी और बंद कर मुझसे बोली, “कहिये क्या जानना है आपको और क्यों ?”
“ क्या तुम खुश हो ऐसी लाइफ से ?”
“ हाँ, बिलकुल क्योंकि मैंने सोच समझकर ही इस काम में कदम रखा है”, कह वो खिलखिलाकर हँस पड़ी और मेरे बिस्तर पर लेट गयी और बोली, “ट्रेलर चाहिए तो दूं क्या ताकि हमारा हिसाब किताब ख़त्म हो फिर तुम अपने रास्ते और मैं अपने. “
“नहीं, मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता लेकिन जिस दिन से तुम्हें देखा है मेरी नींद मेरा चैन मेरे होशो हवास सब खो चुके हैं, सिर्फ तुम ही तुम दिखाई देती हो हर जगह......... क्या तुम ये धंधा छोड़ नहीं सकतीं मेरे लिए, मैं तुम्हें बहुत चाहने लगा हूँ, तुम मेरी ज़िन्दगी बन गयी हो, मेरी हर सांस, हर धड़कन पर सिर्फ तुम्हारा ही नाम लिखा हुआ है.......... लव एट फर्स्ट साईट शायद इसे ही कहते होंगे......अब तुम मुश्किल से मिली हो तो तुम्हें खोना नहीं चाहता, तुम नहीं जानती कहाँ कहाँ नहीं खोजा मैंने तुम्हें..... अब मिली हो तो तुम्हें अपना बनना चाहता हूँ “, मैं घुठनों पर बैठ गया और उसका हाथ अपने हाथ में ले अपने उदगार व्यक्त करने लगा.
“ हे मैन, आर यू मैड ? मैंने तो सोचा था कि चलो तुम्हारा अहसान उतार दूं मगर तुम तो यहाँ कहानी को दूसरा ही मोड़ देने लगे. देखो मैं उस टाइप की लड़की नहीं हूँ जो प्यार आदि के चक्कर में पड़ अपनी ज़िन्दगी बर्बाद कर देती हैं, मिस्टर ज़िन्दगी में प्रैक्टिकल होना जरूरी है तभी इन्सान जी पाता है वैसे भी मुझे ये प्यार व्यार शब्द सब बेमानी लगते हैं, हर मर्द एक जैसा होता है अन्दर से, उसे सिर्फ जिस्म से प्यार होता है, उसे गोश्त चाहिए होता है, वहां ये सूखे प्यार की कहीं कोई जगह नहीं होती क्यों बेकार में फ़िल्मी हो रहे हो, अरे शरीर ही तो चाहिए न तुम्हें ? उस बहाने कहो या इस बहाने तो मैं तो खुद देने को तैयार हूँ ऐसे में ये बेकार का दिखावा क्यों ?”
“ नहीं, मुझे तुम्हारा शरीर नहीं तुम्हारा साथ चाहिए........ तुम हमेशा के लिए मेरी बन जाओ सिर्फ मेरी बस इतनी सी चाहत है.”
“ हाहाहा....... तुम तो बाबू बिलकुल फ़िल्मी निकले......... देखो ये तो दो बार तुम्हारी शराफत देखी तो तुमसे थोडा खुल भी गयी वर्ना किसी को अपने बारे में बताना मैं जरूरी नहीं समझती “, गुस्से से वो बोली.
“ सुनो शमीना, क्या तुम इस ज़िन्दगी को छोड़ नहीं सकतीं ? “
“ अरे खाली पीली क्यों गले पड़ रहे हो ? मैं तो बाज आई तुमसे, अच्छी तुमसे क्या दो चार बातें कर लीं और थोडा खुल गई तुमने तो और ही मतलब निकाल लिया..........मिस्टर मैं अपनी ज़िन्दगी में बहुत खुश हूँ, अपनी मर्ज़ी से जीती हूँ, कोई रोक टोक नहीं, जब जैसे जो जरूरत हुई उसे खुद पूरा करने की हिम्मत रखती हूँ तो क्यूँ तुम्हारे नाम का ढोल गले में बाँधूं ? “
“ क्या तुम समझती हो तुम जो कर रही हो सही कर रही हो ? एक बात बताऊँ....... जब तक चार्म है तुममें और ये जवानी तभी तक है ये ज़िन्दगी तुम्हारी......... कभी सोचा है उसके बाद क्या होगा तुम्हारा ? कहाँ जाओगी ? तब कैसे पूरे करोगी अपने अरमान ?”
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